मध्यकालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य
क्या थे?
इसके लिए सांसारिक वैभव तथा ऐश्वर्य को
अधिक महत्व दिया गया है ।
स्वमूल्यांकन प्रश्न
1. मुस्लिम शासन को सुदृढ़ बनाने के लिए
किस माध्यम का प्रयोग किया गया ?
मुस्लिम काल में लौकिक शिक्षा को अधिक
महत्व क्यों दिया गया
5.4.2 शिक्षा की संरचना
मुस्लिम काल में भी शिक्षा दो स्तरों
में विभाजित थी – प्राथमिक एवं उच्च । प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था मकतबों में
होती थी तथा उच्च शिक्षा की व्यवस्था मदरसों में होती थी । प्राथमिक शिक्षा (Primary
Education) – मुस्लिम शिक्षा का
प्रारम्भ “विस्मिल्लाह” रस्म से किया जाता था । जब बालक 4 वर्ष, 4 माह, 4 दिन का हो जाता था तो नये कपड़े पहनकर
मौलवी के पास जाता था । मौलवी साहब बालक से कुरान की आयतों का उच्चारण करवाते थे ।
बालक के आयतों नहीं दोहराने पर विस्मिल्लाह कहना ही पर्याप्त मानकर बालक का
औपचारिक विद्याध्ययन प्रारम्भ हो जाता था । इस समय मौलवी साहब को कुछ नजराना देकर
बालक को मकतब में प्रविष्ट करवा दिया जाता था ।
5.4.3 शिक्षा का प्रशासन तथा वित्त
मुस्लिम कालीन शिक्षा के प्रशासन तथा
वित्त का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है –
1. राज्य के प्रत्यक्ष नियन्त्रण का अभाव (Lack of Direct
Control of State) –
मुस्लिम काल में सभी शासकों ने इस्लाम
धर्म और संस्कृति के प्रचार तथा प्रसार के लिए मकतब और मदरसों का निर्माण किया और
उन्हें आर्थिक सहायता दी गई । अत: शासन का प्रत्यक्ष नियन्त्रण नहीं था किन्तु
परोक्ष नियन्त्रण था ।
2. निःशुल्क शिक्षा (Free
Education) – मकतबों और मदरसों में
छात्रों से किसी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता था । मदरसों के छात्रावास में
रहने वाले छात्रों को भोजन एवं वस्त्र निःशुल्क दिये जाते थे । मेधावी छात्रों को
छात्रवृति देने की प्रथा भी थी ।
3. आय का स्त्रोत, राज्य द्वारा सहायता (Source of
Income, State Help) – इस
काल के सभी बादशाहों ने मकतब और मदरसों को आर्थिक सहायता प्रदान की | शासन में उच्च पदों पर आसीन लोग भी
इन्हें आर्थिक सहायता देते थे । इस्लाम अनुयायियों ने इन संस्थाओं को चलाना पवित्र
कार्य माना था |
5.4.4 शिक्षण संस्थाएँ
मुस्लिम काल में शिक्षण की व्यवस्था
मकतब तथा मदरसों में की गई थी । इनके अतिरिक्त खानकाह, दरगाह, कुरान स्कूल, फारसी स्कूल, फारसी-कुरान स्कूल तथा अरबी स्कूलों की
भी व्यवस्था थी । इन सभी शिक्षण संस्थाओं का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है –
मकतब –
मकतब शब्द अरबी भाषा के “कुतुब’ शब्द से
बना है जिसका अर्थ है – पढ़ना-लिखना सीखने का स्थान | मकतबों में साधारणत: एक अध्यापक होता था
तथा ये मस्जिद से संलग्न होते थे | पर्दा
प्रथा के बावजूद भी मकतबों में सह-शिक्षा का प्रचलन था ।
मदरसा –
मदरसा शब्द अरबी भाषा के “दरस” शब्द से
बना है । जिसका अर्थ है भाषण देना । मुस्लिम काल उच्च शिक्षा प्राय: भाषण विधि के
द्वारा दी जाती थी । अत: उच्च शिक्षा की संस्थाओं को मदरसा कहा गया । मदरसों में
बहुत से अध्यापक होते थे । इनको उच्च वेतन दिया जाता था ।। मदरसों में बड़े-बड़े पुस्तकालय
थे तथा अध्यापक निवास तथा छात्रावास की व्यवस्था भी थी ।
खानकाह –
ये प्राथमिक शिक्षा के केन्द्र थे,
इनमें केवल मुस्लिम छात्र ही प्रवेश ले
सकते थे ।
दरगाह – ये भी प्राथमिक शिक्षा के केन्द्र थे तथा मुस्लिम बालकों के लिए बनाये जाते थे ।
कुरान स्कूल – इनमें धार्मिक शिक्षा प्रदान की जाती थी, यहाँ केवल कुरान शरीफ की पढ़ाई ही करवाई जाती थी ।
फारसी स्कूल – ये उच्च शिक्षा के केन्द्र थे, इनमें मुख्यालय से फारसी भाषा और मुस्लिम संस्कृति की शिक्षा दी जाती थी । इनमें हिन्दू एवं मुस्लिम दोनों छात्रों को प्रवेश मिलता था ।
फारसी कुरान स्कूल – ये धार्मिक शिक्षा केन्द्र थे, इनमें फारसी भाषा तथा कुरान शरीफ की शिक्षा दी जाती थी ।
अरबी स्कूल – ये उच्च शिक्षा के केन्द्र थे, इनमें अरबी भाषा तथा साहित्य की शिक्षा दी जाती थी।
दरगाह – ये भी प्राथमिक शिक्षा के केन्द्र थे तथा मुस्लिम बालकों के लिए बनाये जाते थे ।
कुरान स्कूल – इनमें धार्मिक शिक्षा प्रदान की जाती थी, यहाँ केवल कुरान शरीफ की पढ़ाई ही करवाई जाती थी ।
फारसी स्कूल – ये उच्च शिक्षा के केन्द्र थे, इनमें मुख्यालय से फारसी भाषा और मुस्लिम संस्कृति की शिक्षा दी जाती थी । इनमें हिन्दू एवं मुस्लिम दोनों छात्रों को प्रवेश मिलता था ।
फारसी कुरान स्कूल – ये धार्मिक शिक्षा केन्द्र थे, इनमें फारसी भाषा तथा कुरान शरीफ की शिक्षा दी जाती थी ।
अरबी स्कूल – ये उच्च शिक्षा के केन्द्र थे, इनमें अरबी भाषा तथा साहित्य की शिक्षा दी जाती थी।
5.4.5 पाठ्यक्रम
मुस्लिम कालीन पाठ्यचर्या दो स्तरों में
विभाजित थी – प्राथमिक और उच्च शिक्षा । प्राथमिक स्तर पर सभी विषयों का अध्ययन
अनिवार्य था, उच्च स्तर पर अरबी
तथा फारसी भाषा के साथ-साथ अन्य विषयों का भी शिक्षण किया जाता था ।
प्राथमिक स्तर का पाठ्यक्रम –
इस स्तर पर छात्रों को पढ़ना, लिखना, लिपि ज्ञान, साधारण गणित अर्जीनवीसी, पत्र व्यवहार, कुरान शरीफ को कण्ठस्थ कराना आदि की
शिक्षा प्रदान करके उनमें जीविकोपार्जन की शिक्षा का विकास किया जाता था । छात्रों
को नैतिक विकास करने के लिए उन्हें शेख-सादी की प्रसिद्ध पुस्तकें ‘गुलिस्ताँ’ तथा
‘दोस्ती’ पढ़ाई जाती थी इसके अतिरिक्त बालकों को मुस्लिम पैगम्बरों तथा फकीरों की
कहानियाँ सुनाई जाती थी । अरबी-फारसी भाषा के कवियों की कविताएँ भी पढ़ाई जाती थी
। उच्चारण एवं सुलेख पर अधिक ध्यान दिया जाता था तथा बार-बार अभ्यास भी करवाया
जाता था ।
उच्च स्तर का पाठ्यक्रम – उच्च स्तर का पाठ्यक्रम दो भागों में
विभक्त किया गया था । –
लौकिक शिक्षा (Wordly Education)
तथा धार्मिक शिक्षा (Religious
Education)
लौकिक शिक्षा –
इसके अन्तर्गत अरबी तथा फारसी भाषा तथा
साहित्य, अंकगणित, ज्योतिष, नीति शास्त्र यूनानी चिकित्सा, कला-कौशल की शिक्षा एवं व्यवसायों की
शिक्षा दी जाती थी । धार्मिक शिक्षा में कुरान शरीफ, इस्लामी इतिहास, इस्लामी साहित्य, सूफी साहित्य और शरिअत (इस्लामी कानून)
की शिक्षा प्रदान की जाती थी ।
5.4.6 शिक्षण विधियाँ
‘गुनार मिरडल’ ने कहा है – “उच्च शिक्षा
की संस्थाओं में पढ़ने तथा लिखने को मौखिक शिक्षण विधियों से अधिक श्रेष्ठ स्थान
दिया जाता था । मुस्लिम काल में मुख्यत: शिक्षा मौखिक रूप से ही दी जाती थी तथा
रटने पर अधिक बल दिया जाता था ।” उस काल की कुछ विधियों का विवरण इस प्रकार हैं –
(अ) स्वाध्याय विधि (Self Study
Method) – इस विधि में छात्र
पुस्तकालयों में बैठकर मुस्लिम शासकों द्वारा तैयार करवाई गई पुस्तकों का अध्ययन
करते थे ।
कक्षा-नायकीय विधि (Monitor
Method) – इस विधि में अध्यापक
की उपस्थिति में बडी कक्षाओं के कुशल व योग्य छात्र छोटी कक्षा के छात्रों को
पढ़ाते थे । इससे छात्रों को शिक्षण काल में ही प्रशिक्षण के अवसर मिलते थे ।
(स) शास्त्रार्थ विधि (Debate
Method) – उच्च शिक्षा के
संस्थानों में इस विधि का प्रचलन था । इसका प्रदर्शन राजदरबार में किया जाता था |
महत्वपूर्ण विषयों के गहन अध्ययन के लिए
यह उपयुक्ता विधि थी ।
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